Monday, May 30, 2011

अनुराग यश लिखते हैं....


"एक पल की उम्र लेकर" सजीव सारथी की ६८ अदभुत कविताओं का संकलन है. काफी दिनों बाद कुछ ऐसा पढ़ने को मिला है जो कि 'गागर में सागर' भरने जैसा है. रचना 'विलुप्त होते किसान' जहाँ आपको धरती से जोड़ कर आन्दोलित करते हैं वहीँ लेखक की एक कविता शीर्षक 'ऐसी कोई कविता' पाठक को ठंडक देती है. कविता 'नौ महीने' एक कठोर सत्यता का एहसास कराती है तो वहीँ 'स्पर्श की गर्मी' शीर्षक कविता आपको अंदर तक भिगो कर रख देती है. कवि का देश प्रेम दिखता है 'सुलगता दर्द-कश्मीर में' और अन्य कवितायें जैसे ठप्पा, जंगल, गिरेबाँ, सूखा अलग अलग विषय होते हुए भी आपको मैथ कर रख देती है, अंत में दस क्षणिकाओं में से एक क्षणिका 'पेंडुलम' एक बुद्धिजीवी व्यक्ति की व्यथा है जो कि सजीव सारथी ने सजीव कर दी है. मेरा अपना मत है कि ये संकलन अपने आप में इतना मुक्कमल है कि अब लेखक को अब आगे न कुछ लिखने की अवश्यकता है और न समाज को कुछ और देने की.


यश

(लेखक, निर्माता, निर्देशक)

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