Tuesday, August 16, 2011

बहुत देर तक - एक पल की उम्र लेकर से

अंतरजाल पर सबसे प्रसिद्ध श्रृंखलाओं में से एक "ओल्ड इस गोल्ड" के स्तंभकार सुजोय चट्टर्जी ने अपनी नयी श्रृंखला कविता संग्रह "एक पल की उम्र लेकर" को समर्पित किया है. जिसमें संग्रह से उन्होंने १० अपनी पसंदीदा कवितायेँ चुनी हैं जिनपर आधारित १० फ़िल्मी गीतों को भी उनके भाव से जोड़ा है.
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Episode - 08

'एल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहने वालों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! जैसा कि इन दिनों इस स्तंभ में आप आनंद ले रहे हैं सजीव सारथी की लिखी कविताओं और उन कविताओं पर आधारित फ़िल्मी रचनाओं की लघु शृंखला 'एक पल की उम्र लेकर' में। आज नवी कड़ी के लिए हमने चुनी है कविता 'बहुत देर तक'।

बहुत देर तक
यूँ ही तकता रहा मैं
परिंदों के उड़ते हुए काफ़िलों को
बहुत देर तक
यूँ ही सुनता रहा मैं
सरकते हुए वक़्त की आहटों को

बहुत देर तक
डाल के सूखे पत्ते
भरते रहे रंग आँखों में मेरे
बहुत देर तक
शाम की डूबी किरणें
मिटाती रही ज़िंदगी के अंधेरे

बहुत देर तक
मेरा माँझी मुझको
बचाता रहा भँवर से उलझनों की
बहुत देर तक
वो उदासी को थामे
बैठा रहा दहलीज़ पे धड़कनों की

बहुत देर तक
उसके जाने के बाद भी
ओढ़े रहा मैं उसकी परछाई को
बहुत देर तक
उसके अहसास ने
सहारा दिया मेरी तन्हाई को।


इस कविता में कवि के अंदर की तन्हाई, उसके अकेलेपन का पता चलता है। कभी कभी ज़िंदगी यूं करवट लेती है कि जब हमारा साथी हमसे बिछड़ जाता है। हम लाख कोशिश करें उसके दामन को अपनी ओर खींचे रखने की, पर जिसको जाना होता है, वह चला जाता है, अपनी तमाम यादों के कारवाँ को पीछे छोड़े। उसकी यादें तन्हा रातों का सहारा बनती हैं। फिर एक नई सुबह आती है जब कोई नया साथी मिल जाता है। पहले पहले उस बिछड़े साथी के जगह उसे रख पाना असंभव सा लगता है, पर समय के साथ साथ सब बदल जाता है। अब नया साथी भी जैसे अपना सा लगने लगता है जो इस तन्हा ज़िंदगी में रोशनी की किरण बन कर आया है। और जीवन चक्र चलता रहता है। एक बार फिर। "फिर किसी शाख़ नें फेंकी छाँव, फिर किसी शाख़ नें हाथ हिलाया, फिर किसी मोड़ पे उलझे पाँव, फिर किसी राह नें पास बुलाया"। किसी के लिए ज़िंदगी नहीं रुकती। वक़्त के साथ हर ज़ख़्म भरता नहीं, फिर भी जीते हैं लोग कोई मरता नहीं। तो उस राह नें अपनी तरफ़ उसे बुलाया, और वो उस राह पर चल पड़ा, फिर एक बार। आइए सुना जाये राहुल देव बर्मन के संगीत में फ़िल्म 'लिबास' में लता मंगेशकर की आवाज़, गीत एक बार फिर गुलज़ार साहब का।

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